गणेश जी महाराज की आरती

गजानन गणेश जी महाराज की आरती पढ़ने से पहले आईए जानते हैं कि भगवान श्री गणेश जी को "गणेश जी महाराज" इसलिए कहते है क्योंकि यह शब्द उनके उच्च आदर्श और सम्मान को व्यक्त करता है। "गणेश" का अर्थ है "गणों के स्वामी" या "सभी गणों के अधिपति", और "महाराज" का अर्थ है "महान राजा" या "श्रेष्ठ शासक"।

भगवान श्री गणेश जी न केवल विघ्नहर्ता और सुख-समृद्धि के दाता हैं, बल्कि उनके पास ज्ञान, बुद्धि, और शक्ति का भी बड़ा प्रतीक है। इसलिए उन्हें सम्मान देने के लिए "महाराज" जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता है, जो उनकी महानता और सर्वव्यापकता को दर्शाता है । आइए पढ़ते है गणेश जी महाराज की आरती लिखित में ।

गणेश जी महाराज की आरती लिखित में

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जा की पार्वती पिता महादेवा ।।
जय गणेश...।।

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लडुअन को भोग लगे, सन्त करे सेवा ।।
जय गणेश...।।

एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे मूष की सवारी ।।
जय गणेश...।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया ।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।
जय गणेश...।।

दीनन की लाज राखो शम्भु सुतवारी ।
कामना को पूरा करो जाऊँ बलिहारी ।।
जय गणेश...।।

सूर श्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा ।
रिद्धि देत सिद्धि देत बुद्धि देत देवा ।।
जय गणेश...।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।।
जय गणेश...।।

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