माँ दुर्गा की नव शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणीमाता का है। यहाँ 'ब्रह्म' शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप की आचरण करने वाली। जैसे कि कहा जाता है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म, यहाँ वेद, तत्त्व और तप का संबंध 'ब्रह्म' शब्द से है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय और अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमण्डलु होता है।
अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा गया।
।। देवी ब्रह्मचारिणी जी की आरती ।।
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता ।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो ।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा ।
जिसको जपे सरल संसारा ।।
जब गायत्री वेद की माता ।
जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता ।।
कमी कोई रहने ना पाये ।
कोई भी दुख सहने न पाये ।।
उसकी विरती रहे ठिकाने ।
जो तेरी महिमा को जाने ।।
रुद्रछा की माला लेकर ।
जपे जो मंत्र श्रद्धा देकर ।।
आलस छोड़ करे गुणगान ।
मां तुम उसको सुख पहुंचना ।।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम ।
पूर्ण करो सब मेरे काम ।।
भक्त चरणों का पुजारी ।
रखना लाज मेरी महतारी ।।
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